कविता

दूब के लाल फूल

हरी-हरी इस दूब जाल से,
रक्तिम फूल खिले हैं कैसे?
झील की तिरती-सी काई में,
खड़े कमल के नाल हों जैसे.

हिमगिरि के उत्तुंग शृङ्ग पर,
खिले हुए से पलाश हों जैसे,
मानव के चिर स्निग्ध हृदय में,
उठी हुई अभिलाषा जैसे.

अंगड़ाई लेती-सी धरा में,
फूटे जैसे प्रणय के अंकुर,
हरी-हरी इस दूब जाल से,
रक्तिम फूल खिले हैं ऐसे.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “दूब के लाल फूल

  • लीला तिवानी

    दूब के सुंदर स्दाबहार लाल फूल कहीं भी स्वतः ही प्रस्फुटित होकर प्रेम का संदेश देते हैं. प्रस्तुत है यह छायावादी कविता-

    हरित धरा पर लाल फूल ये,
    देते हैं संदेश प्रेम का,
    प्रेम अमर है इस दुनिया में,
    जीवन दूजा नाम प्रेम का.

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