दूब के लाल फूल
हरी-हरी इस दूब जाल से,
रक्तिम फूल खिले हैं कैसे?
झील की तिरती-सी काई में,
खड़े कमल के नाल हों जैसे.
हिमगिरि के उत्तुंग शृङ्ग पर,
खिले हुए से पलाश हों जैसे,
मानव के चिर स्निग्ध हृदय में,
उठी हुई अभिलाषा जैसे.
अंगड़ाई लेती-सी धरा में,
फूटे जैसे प्रणय के अंकुर,
हरी-हरी इस दूब जाल से,
रक्तिम फूल खिले हैं ऐसे.
दूब के सुंदर स्दाबहार लाल फूल कहीं भी स्वतः ही प्रस्फुटित होकर प्रेम का संदेश देते हैं. प्रस्तुत है यह छायावादी कविता-
हरित धरा पर लाल फूल ये,
देते हैं संदेश प्रेम का,
प्रेम अमर है इस दुनिया में,
जीवन दूजा नाम प्रेम का.