ग़ज़ल
एक रिश्ता तबाह कर डाला
हाय ये क्या गुनाह कर डाला
लब पे पहले हँसी तुम्हीं ने दी
फिर तुम्हीं ने कराह कर डाला
आशनाई में जान पे आयी
काम ये ख़ामख़ाह कर डाला
शेर की रूह तक नहीं पहुँचे
बेवज़ह वाह- वाह कर डाला
मौत से अब न ख़ौफ़ है जबसे
क़ब्र को ख़्वाबगाह कर डाला