उम्मीद का दामन
उम्मीद करना एक जगे हुए व्यक्ति के सपने देखने के समान है. साइना नेहवाल ने एक जगे हुए व्यक्ति के समान ही सपना देखा था. इसी सपने को लेकर वह ओलिंपिक 2016 में पदक की उम्मीद लेकर रियो डी जनीरो पहुंची थीं. घुटने में चोट होते हुए भी उसने पदक की उम्मीद नहीं छोड़ी थी. दूसरे मैच में हार कर वह बाहर हो गईं, लेकिन उम्मीद का दामन फिर भी नहीं छोड़ा.
आशावादी होना वह विश्वास है, जो हमें उपलब्धि की तरफ ले जाता है. बिना आशा व उम्मीद के कुछ भी नहीं किया जा सकता. इसी उम्मीद पर वह बराबर प्रयास करती रहीं. 21वें कॉमनवेल्थ गेम्स गोल्ड कोस्ट से आखिरी दिन तालियों की गड़गड़ाहट के साथ समाचार आया-
”लीजिए साइना नेहवाल ने पीवी सिंधु को हराकर रचा इतिहास, जीता सिंगल्स का गोल्ड मेडल- साइना नेहवाल ने 21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में बैडमिंटन के महिला एक वर्ग का गोल्ड मेडल जीतकर एक बार फिर बता दिया कि वह अब भी देश की टॉप शटलर हैं. फाइनल मुकाबले में उन्होंने अपनी ही देश की स्टार शटलर पीवी सिंधु को बेहद कड़े मुकाबले में 21-18 और 23-21 से जीत दर्ज की.”
उम्मीद का दामन थामे साइना नेहवाल ने 21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में बैडमिंटन के महिला वर्ग का गोल्ड मेडल अपने नाम किया.
बहुत प्रेरक उदाहरण है साइना का !
प्रिय विजय भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत दिलचस्प लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में बैडमिंटन के महिला वर्ग का गोल्ड मेडल अपने नाम किया. इस गोल्ड मेडल की यह विशेषता है, कि यह गोल्ड मेडल अपने ही देश की पी.वी. सिंधु को हराकर प्राप्त किया, यानी सोना भी भारत का और चांदी भी भारत की. मजे की बात यह ऐ, कि साइना के कोच भी गुरु पुलेला गोपीचंद जी हैं और सिंधु के भी. वाह भीरत के लिए भी और गुरु पुलेला गोपीचंद जी के लिए भी क्या ही सुखद संयोग है!.