सोचा करता हूँ
सोचा करता हूँ मै तेरा ओहदा रब से कम क्या होगा ।
हिज़्र में जब है इतनी लज्जत वस्ल का आलम क्या होगा ।
इश्क के पहलू में तो खिजां भी नूर खिलाती है दिल में,
ये मेरा भगवान ही जाने फूलों का मौसम क्या होगा ।
माना तेरी खबर नहीं कुछ लेकिन मै बेखबर नहीं,
अपना हाल बता देता है हाले हमदम क्या होगा ।
रहकर मुझसे दूर तू साथी मेरे कितने पास भी है,
इस दुनिया मे कोई तुझसा मेरा महरम क्या होगा ।
‘नीरज’ जिसकी राहों में ये लुत्फे जीवन पाया है,
तड़प उठा हूँ सोच के उस मंजिल का संगम क्या होगा ।
नीरज निश्चल