आशा की पीठिका
बिजली ऐसी चमकी जैसे,
मानव के उर आशा,
छाया चारों ओर अंधेरा,
मानो घोर निराशा.
तिमिरांचल में छिपी हुई हो,
जैसे कोई दूती,
भू को आती है लेकिन वह,
पृथ्वी को नहीं छूती.
देती है संदेश वह प्यारा,
आशा-संग जीने का,
मुसीबतों को दूर हटाने,
साहस से जीने का.
आप्लावित है सारी धरती,
काले-कजरारे बदरा से,
आच्छादित है जल-थल सारा,
काली कजली के आंचल से.
पर प्राची के रव की लाली,
स्वर्णिम होकर बहती है,
मानव के उर की आशा को,
हो निःस्तब्ध निरखती है.
ज़िंदगी एक पेंटिंग
ज़िंदगी एक पेंटिंग की मानिंद है,
आशा से इसकी रेखाएं खींचिए,
सहनशीलता से इसकी त्रुटियों को मिटाइए,
असीम धैर्य के रंग में इसके ब्रुश को डुबोइए,
और
प्रेम से इसमें प्रेम के रंग भरिए.