प्रेम
प्रेम पूर्ण है
प्रेम विश्वास है
प्रेम रहस्य है
प्रेम बेशर्त है
प्रेम समर्पण है
प्रेम आकर्षण है
प्रेम विरह है
प्रेम वेदना है
प्रेम सरल है
प्रेम जटील है
प्रेम जीत है
प्रेम हार है
प्रेम बिन सब सुना है
नही कोई अपना है
ढाई अक्षर का प्रेम ही
पराया को भी
बना देता अपना है।
निवेदिता चतुर्वेदी’निव्या’
बहुत अच्छा लिखा है आपने धन्यवाद