चंद्रमा
दादी कहती थी, ”चंदा में,
बुढ़िया चरखा चलाती है”,
नानी कहती थी, ”नहीं-नहीं,
उसमें खरगोश का नाती है”.
जब मानव पहुंचा चंद्रलोक,
बुढ़िया भी न थी, खरगोश भी न था,
बस ऊबड़-खाबड़ क्रेटर थे,
वायुमंडल तक तो भी न था.
अब चंद्रमुखी कहलाने में,
आएगी शर्म ललनाओं को,
हम सुधानिधि और कलानिधि में,
खोज न पाए कलाओं को.
औषधिपति कैसे कहें इसे?
इसमें औषधि का नाम नहीं,
दीर्घायु बनाना पतियों को,
है इसके बस का काम नहीं.
सागर का पुत्र कहें कैसे?
इसका भी कोई प्रमाण नहीं,
ज्वालामुखी पर्वत तो हैं,
जल का तो कहीं भी नाम नहीं.
कवि ढूंढ रहे नव उद्दीपन,
बच्चे भी सबसे पूछ रहे,
अब दूध-मलाई लाने को,
चंदामामा से कौन कहे?
दाग नहीं, चांद का टैटू?
नासा के नए शोध से चांद के रहस्यमयी टैटू के बारे में जानकारी मिली है जो इसकी सतह के 100 से ज्यादा हिस्सों में अंधेरों और रोशनी के पैटर्न के रूप में नजर आती है. नासा के मैरीलेंड के ग्रीनबेल्ट में स्थित गोदार्द स्पेस फ्लाइट सेंटर के जॉन केलर ने बताया, “इन पैटर्न को ‘लूनर स्वर्ल्स’ कहा जाता है. ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने चांद पर चित्रकारी कर दी हो. ये अनूठे हैं. इसकी खोज के बाद से ही इसे लेकर एक रहस्य था कि यह कैसे बना”