नादान दोस्त
न जाने कैसे —
गैरों की बातें सुन कर
वो नादानी में इतना बहक गए ,
बड़ने लगे जब वो
खंजर ले के हाथ में
मेरे गिरेबां तक पहुँच गए,
यह ज़मीं ज़रकने लगी.
और कब्र में दफ़न
मुर्दे भी तड़पने लगे,
सर्द हवाओं में महकने वाले फूल भी
जैसे अंगारो से दहकने लगे .
वैसे तो वो आये थे ले के खंजर
मेरे गिरेबां पे रखने
देखते ही मेरी सूरत —
कुछ यूं हुए मुतासिर
हाथ से छूट गया खंजर
आँखों से आंसू भी छलक गए…
पशेमान हो गए अपनी करनी पर
अपने आप में ही सिमट गए,
और दोनों बाहें फैला कर ,
मेरे सीने से लिपट गए,
— जय प्रकाश भाटिया