कविता

इश्क़

जीने की आरजू में रोज मरते हैं ,
हम वो परवाने हैं जो इश्क़ की आग में

रोज खुद को फना करते हैं ।
तड़फते हैं दिन भर इश्क़ के चूल्हे में
रात को इश्क़ के धुंए में दामन को चाक करते हैं ।

चोली दामन का साथ है इश्क़ और आंसूं का ,
इश्क़ के पतीले में इबादत को उबाला करते हैं ।

मंजिलें कब नसीब होती हैं इश्क़ के ख्यालों को ,
लकड़ी की तरह खुद को जलाया करते हैं ।

नफरत है अगर इश्क़ तो जरा गौर भी फरमाइए ,
क्यों पूजते हो पत्थर के बेनाम बुतों को तुम

नजर तो उठाइये हुजूर उन सिसकते हुए प्यादों की तरफ ,
बन के हीर तमाम उम्र तसब्बुर में जिया करते हैं ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017