कविता
चलो कुछ इस तरह
हम समझौता कर लेते हैं
हर चीज को जातियों में बांट लेते हैं
खुद को अपनी जातियों तक सीमित कर देते हैं
जो जिस जाति का है
उसका उसी जाति का डॉक्टर इलाज करेगा
उसे उसी जाति का खून चढ़ेगा
उसी जाति का अध्यापक पढ़ायेगा
फिर तो तुम भी खुश हम भी खुश
जातियों के बॉर्डर भी बना लेते हैं
और अपनी अपनी जातियों के फौजी रक्षा करेंगे
ना तुम कुछ कह सकोगे ना कुछ हम कह सकेंगे
अपनी ही जाति के नेताओं को मुखिया बनाया करेंगे
बोलो सही है ना, कर दें यही व्यवस्था लागू
तब देखना कौन कितनी तरक्की करता है
तब देखना कौन किसका शोषण करता है
आजमा लेते हैं इस फॉर्मूले को शांति के लिए
कर लो तैयारी जलाने को घी के दिये
“सुलक्षणा” तुम भी केवल अपनी जाति पर ही लिखना
फिर पढ़ा करेंगे वो तेरा एक एक अल्फ़ाज यहाँ
©️®️ डॉ सुलक्षणा
वाहहहहहहह