कविता
मदहोशी का आलम छा रहा है,
दिल के दरिया में भूचाल आ रहा है!
हमारी हस्ती कुछ भी नही,
फिर जाने क्यों तलबगारो का सैलाब आ रहा है?
मैं डूब रहा हूँ शब्दों की गहराई में, जल्द ही इस लेखनी का मुकम्मल त्योंहार आ रहा है!
कलम अथक है, जज्बातों को इसका साथ बखूबी भा-रहा है!
मेरा वजूद लड़ता है मुझसे ,मिट्टी का पुतला मिट्टी पर ही इतरा रहा है!
इबादत करता हूँ मन में हर पल,
ख्वाहिशों के घरो को नित् सजा रहा हूँ!
बना रहे साथ हरकदम, अंधेरो के सायों को तेजी से ढ़हा रहा हूँ!
— पवन अनाम
बरमसर
9549236320
जय हो