गज़ल
जिसे हालात ने मारा हो मुहब्बत कैसे वो कर ले,
जो खुद टूटा सितारा हो मुहब्बत कैसे वो कर ले,
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सहारा देना पड़ता है इक दूजे को मुश्किल में,
जो खुद ही बेसहारा हो मुहब्बत कैसे वो कर ले,
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जीने के लिए छत भी ज़रूरी होती है सर पर,
जो खुद बेघर बेचारा हो मुहब्बत कैसे वो कर ले,
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जीत है लाज़िमी शतरंज की बाज़ी हो या दिल की,
जो खुद दुनिया से हारा हो मुहब्बत कैसे वो कर ले,
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ना कोई राह ना मंज़िल ना जीने का कोई मकसद,
जो खुद बादल आवारा हो मुहब्बत कैसे वो कर ले,
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।