गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : भगवान क्यों है!

किया उसने मुझपे ये एहसान क्यों है?
यही सोचकर दिल परेशान क्यों है?
खिली रहती थी पहले होंठों पे उसके
वो अब उस हँसी से ही अनजान क्यों है?
गया ज़िंदगी से वो अपना न था तो
लगे जिंदगी आज वीरान क्यों है?
नहीं था जो क़िस्मत में वो ना मिला फिर,
अभी भी जगा दिल में अरमान क्यों है?
जो अपनों के दुख से दुखी ना हुआ हो
उन्हीं की ख़ुशी से परेशान क्यों है?
हक़ीक़त में इंसाँ भी बन ना सका तू
तो फिर मानता ख़ुद को भगवान क्यों है?
प्रज्ञा लोकेश मिश्रा

प्रज्ञा लोकेश मिश्रा

पुत्री डॉ कमलेश द्विवेदी