कविता

वह पहला हिन्दुस्तान

मेरे देश के नौजवानो , शक्ति के दीवानो ,
क्यों देश में हिंसा फैली है
क्यों काली हुई दिवाली है
कहाँ गयी खुशहाली है
हम हर इनसान से पूछते हैं
वह पहला हिन्दुस्तान ढूँढ़ते हैं ।
लाचारी न थी कहीं  , बीमारी न थी कहीं
खुशियों के डेरे थे  , बहारों के फेरे थे
कौन यहाँ पर दुश्मन
देश का अमन – चैन लूटते हैं
हम अपना हिन्दुस्तान ढूँढ़ते हैं ।
युवा शक्ति को संबोधित करती हैं ये पंक्तियाँ  –
कि आग लगी जो दिल में तुम्हारे
है उबाल जो ख़ूं में तुम्हारे
तो फिर इतना ही है कहना
झुग्गी  – झोंपड़ियों में झाँको
लाचारों के पेट में ताको
कहीं आग लगानी ही है तो
उन सूने चूल्हों में लगाओ
दाल  – रोटी जहाँ पक सके
क्यों नहीं ये सवाल तुम्हारे मन को सूझते हैं
हम पहला हिन्दुस्तान ढूँढ़ते हैं ।
युवा हो खुद की शक्ति जानो
कुंठा और रूढ़ियों की जड़ पहचानो
जलती नारियों के दुख जानो
दहेज विरोधी वितान तानो
भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाओ
दुश्मन को तो सबक सिखाओ
कि आँख इधर उठने न पाए
आतंक न कहीं दामन फैलाए
कोई ऐसा कानून बनाओ
ज़रा सोचो , विदेशी क्यों
हमारा देश लूटते हैं
हम अपना हिन्दुस्तान ढूँढ़ते हैं ।
मंदिर  – मस्जिद , गिरजाघर की
शक्ति को ललकारने वाले
पटकनी खुद को दे देंगे
वो अपना बन उठाने वाले
याद करो वो जलियाँवाले
बाग के अमर शहीदों की
दीवारों में बच्चे चुनवाये
याद करो उन मुरीदों की
आग लगा दो उन हाथों को
जो धरा हमारी छीनते हैं
उठते हुये तूफ़ानों में हम
पहला हिन्दुस्तान ढूँढ़ते हैं ।
आज संकल्प की धरा पर तुमने
खड़ा करना है भव्य महल
ड्रग्स , तम्बाकू , सिगरेट , शराब
डाल रहे शांति में खलल
करो कुछ ऐसा कि टूटे न फिर क़हर
खुशियों के फूल खिलाओ वहाँ
रुदन के स्वर जहाँ फूटते हैं
हम अपना हिन्दुस्तान ढूँढ़ते हैं ।
रवि रश्मि  ‘ अनुभूति ‘