विचारात्मक बाल कथा : मजदूर दिवस
”गुड़िया, ब्रेड पुडिंग जल्दी खाओ, गरम हो जाएगी,”
”ममी, पहले ब्रजेश भैया और रमेश भैया को दो, फिर खाऊंगी.”
”अब क्या सभी मजदूरों को भी ब्रेड पुडिंग बंटेगी?”
”क्यों नहीं, वे हमारे लिए इतना सुंदर घर भी तो बना रहे हैं न!”
”उसके लिए उन्हें मजदूरी भी तो मिलती है न!”
”ममी, जरा सोचकर देखिए, उस मजदूरी से क्या वे ब्रेड पुडिंग खा सकते हैं?” तनिक रुककर गुड़िया बोली- ”ममी, इन मजदूरों को कुछ खिलाकर हमारा तो कुछ नहीं जाएगा, लेकिन वे कितने खुश होंगे और हमको दुआएं देंगे.”
गुड़िया की बात में ममी को कुछ दम नजर आया और उन्होंने दो प्लेटों में ब्रेड पुडिंग परोसकर ब्रजेश और रमेश को देते हुए कहा- ”आओ बच्चो, कुछ खाकर पानी पी लो, फिर काम करना.”
मजदूरों को लगा सचमुच आज उनका मजदूर दिवस मन गया.
जबरदस्त
प्रिय अरविंद भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत प्रेरणादायक लगी. आपकी छोटी-सी जबरदस्त प्रतिक्रिया हमारी लेखनी को जबरदस्त उत्साह प्रदान कर देती है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए
आदमी मज़दूर है राहें बनाने के लिए
बुलाते हैं हमें मेहनत-कशों के हाथ के छाले
चलो मुहताज के मुँह में निवाला रख दिया जाए