चले आओ मेरी आंखों का पानी देखते जाओ
गजल : कुमार अरविन्द
चले आओ मेरी आंखों का पानी देखते जाओ |
कहानी है तुम्हारी ही , निशानी देखते जाओ |
मैं जिन्दा हूं तुम्हारे बाद भी तुमको तसल्ली हो |
कफ़न सरका के मेरी बे – ज़बानी देखते जाओ |
तुम्हारी बेबफाई का उतारूं आज मैं ‘ सदका |
मेरी यूं ‘ ख़ाक में मिलती जवानी देखते जाओ |
कहां गुजरी गुजारी जिंदगी तुमको पता कैसे |
मेरे इस दर्द की पागल कहानी देखते जाओ |
हमारे पैरहन से ख़ुशबुएं आती हैं हर लम्हा |
गुलों के साथ रहने की निशानी देखते जाओ |
सुकूं मिलता नहीं है बाद मर जाने के दुनियां में |
कफ़न ओढ़ी हुई ‘ आंखों मे पानी देखते जाओ |
अभी तारा ये रूठा था ‘अचानक चा़ंद निकला है |
छतों पर से करिश्मे आसमानी देखते जाओ |
अगर हिंदी हमारी माँ रही उर्दू बनी मौसी |
यक़ीनन आप मेरी हम ज़ुबानी देखते जाओ |
तुम्हीं कहते रहे अरविन्द कुछ दिल में कहीं होगा |
मुहब्बत हो गयी है ‘ मेहरबानी देखते जाओ |
बेजबानी – चुप रहना , सदका – न्यौछावर या उतारा ,
खाक – मिट्टी , पैरहन – कपडे
प्रिय अरविंद भाई जी, गज़ल जबरदस्त लगी. अत्यंत सटीक व सार्थक ब्लॉग के लिए आभार.