गीतिका/ग़ज़ल

चले आओ मेरी आंखों का पानी देखते जाओ

गजल : कुमार अरविन्द

चले आओ मेरी आंखों का पानी देखते जाओ |
कहानी है तुम्हारी ही , निशानी देखते जाओ |

मैं जिन्दा हूं तुम्हारे बाद भी तुमको तसल्ली हो |
कफ़न सरका के मेरी बे – ज़बानी देखते जाओ |

तुम्हारी बेबफाई का उतारूं आज मैं ‘ सदका |
मेरी यूं ‘ ख़ाक में मिलती जवानी देखते जाओ |

कहां गुजरी गुजारी जिंदगी तुमको पता कैसे |
मेरे इस दर्द की पागल कहानी देखते जाओ |

हमारे पैरहन से ख़ुशबुएं आती हैं हर लम्हा |
गुलों के साथ रहने की निशानी देखते जाओ |

सुकूं मिलता नहीं है बाद मर जाने के दुनियां में |
कफ़न ओढ़ी हुई ‘ आंखों मे पानी देखते जाओ |

अभी तारा ये रूठा था ‘अचानक चा़ंद निकला है |
छतों पर से करिश्मे आसमानी देखते जाओ |

अगर हिंदी हमारी माँ रही उर्दू बनी मौसी |
यक़ीनन आप मेरी हम ज़ुबानी देखते जाओ |

तुम्हीं कहते रहे अरविन्द कुछ दिल में कहीं होगा |
मुहब्बत हो गयी है ‘ मेहरबानी देखते जाओ |

बेजबानी – चुप रहना , सदका – न्यौछावर या उतारा ,
खाक – मिट्टी , पैरहन – कपडे

कुमार अरविन्द

नाम - कुमार अरविन्द ( अरविन्द शुक्ला ) पिता का नाम - राम बहादुर शुक्ला पता - ग्राम - बंजरिया , पोस्ट विशुनपुर संगम , इंटियाथोक गोंडा यूपी ( 271202 ) शिक्षा - वनस्पति शास्त्र में परास्नातक लेखन शैली - गजल मोब. - 9415604118 दैनिक हमारा मेट्रो , वर्तमान अंकुर , राष्ट्रीय सहारा , दैनिक भास्कर अमर उजाला , अमर उजाला काव्य और बेव पत्रिकाओं जैसे कागज़ दिल , सावन , आदि में प्रकाशित

One thought on “चले आओ मेरी आंखों का पानी देखते जाओ

  • लीला तिवानी

    प्रिय अरविंद भाई जी, गज़ल जबरदस्त लगी. अत्यंत सटीक व सार्थक ब्लॉग के लिए आभार.

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