मुक्तक
चिंतन
स्वयं से मुग्धता में और की कविता न भाती है
महाकवि हैं कथित उनको न औरों की सुहाती है
प्रतिस्पर्धा कलुष से हो रहित तो ही फलित होती
अहमहमिका सदा कविमंच को नीचे गिराती है
चिंतन
स्वयं से मुग्धता में और की कविता न भाती है
महाकवि हैं कथित उनको न औरों की सुहाती है
प्रतिस्पर्धा कलुष से हो रहित तो ही फलित होती
अहमहमिका सदा कविमंच को नीचे गिराती है