मेरा संदेश
तुम मुझे कलम कहते हो तो कहो, मुझे तो खुद को कलम कहलाने में बेहद हिचक हो रही है. असल में एक समय मैं खुद को कलम कहलवाकर गर्वित हुआ करती थी. अब बताइए तो कलम और गोला-बारूद में क्या अंतर रह गया है भला! यों सही को सही कहने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन आजकल बेवजह जो वाक्युद्ध चल रहे हैं, बस उन्हीं से मेरा मन परेशान होता है.
पुरातन काल से कलम यानी मैं ही कहती आई हूं, कि ”भर जाता घाव तलवार का, बोली का घाव भरे ना.” पर आज हो क्या रहा है? इसी कलम से सम्माननीय जनों की इज़्ज़त पर वार-प्रतिवार किया जा रहा है, बेटियों-बहुओं की अस्मत पर आघात-प्रतिघात किया जा रहा है. क्या कलम की भूमिका इतनी भर रह गई है! मैं तो बस इतना ही कह पाऊंगी- ”मेरा उपयोग करने में तनिक सावधानी बरतनी होगी, अन्यथा ऊल जुलूल बातों के वार मेरे साथ मानवता को भी घायल कर देंगे”.
मुझ बारूद उगलती कलम से दूर भागने वालो, तनिक रुकिए, मेरा संदेश तो सुनते जाइए-
”किसी को प्यार देना सबसे बड़ा उपहार है,
किसी का प्यार पाना सबसे बड़ा सम्मान है”.
सचमुच कलम से प्रेम का संदेश दिया जा सकता है, सकारात्मकता व जागरुकता का प्रचार-प्रसार किया जा सकता है, जनतंत्र को सुदृढ़ किया जा सकता है, केवल बेवजह वाक्युद्ध से मानवता के हृआस केअतिरिक्त कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है.