कविता – झुलसाती गर्मी
लू अंधड़ धूल के गुबार।
ये गरमी की है पहचान।।
टपकता है खूब पसीना।
बार बार ही पानी पीना।।
ठंडी चीजों को ले आना।
स्वाद से चखकर खाना।।
कैरी प्याज साथ रखना।
इनसे नाता नहीं तोड़ना ।।
आइसक्रीम रोज खाना ।
चुन्नू , मुन्नू का चिल्लाना ।।
गन्ना रस का सेवन करना।
जीवन को रसमय बनाना।।
— कवि राजेश पुरोहित
भवानीमंडी