अपनी नई दुनिया
सबकी तरह उसकी भी एक खूबसूरत दुनिया थी. प्यार करने वाला पति, समझदार व आज्ञाकारी बच्चे, सलोनी सखियां-सहेलियां, क्या नहीं था उसके पास. पति के अकस्मात निधन से पल में सब कुछ बिखर गया. खिलखिलाता हुआ उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा मुरझा गया. पिता के निधन का समाचार सुनकर विदेश से बच्चे आए थे. वे मां को अपने साथ ले जाना चाहते थे, लेकिन वह अपने देश को छोड़कर बेगानी दुनिया में जाने को तैयार नहीं थी. रोती-झल्लाती हुई जिंदगी बिताकर सहानुभूति बटोरने के लिए भी वह राजी नहीं थी. जिंदगी की सच्चाई व क्षणभंगुरता को स्वीकारते हुए उसने हिम्मत से काम लिया.
उसने दो वर्किंग लड़कियों को पेइंग गेस्ट के तौर पर रख लिया. वे पेइंग गेस्ट बनकर रहना चाहती थीं, पर उसने उनको बेटियां बनकर रहने के लिए राजी कर लिया. वे उसे ममी कहती थीं. हफ्ते के पांच दिन वह उनकी खूब सेवा करती, अच्छा खाना-पीना, अनुशासन में रहकर सब सुविधाएं देना, रात को इकट्ठे बैठकर भोजन का आनंद लेना, हंसना-ठहाके लगाना, टी वी देखना, दिनभर के विचारों-समाचारों का आदान-प्रदान, और क्या चाहिए खुशहाल जिंदगी के लिए! बाकी दो दिन बेटियां खाना बनातीं, ममी आराम फरमातीं. दुःख-सुख में एक-दूसरे का सहारा बनतीं. बेटियां ममी को पिकनिक-शापिंग पर भी ले जातीं.
विदेश से बच्चों के फोन बराबर आया करते, पर अब उसे इसकी बहुत ज्यादा प्रतीक्षा भी नहीं रहती. उसने अपनी नई दुनिया जो बसा ली थी.
वाह! क्या बात है. खुद को भी सहारा मिल गया, दो लड़कियों को भी. तीनों का अकेलापन दूर हो गया. एक संपूर्ण नई दुनिया बस गई.