मितव्ययिता
रामू खेलकर घर में आया,
देखा नल को बहता उसने,
सोचा ममी बंद करेंगी,
नल को बंद किया ना उसने.
कमरों की बत्ती जलती थी,
पंखे भी सब हवा दे रहे,
सोचा पापा बंद करेंगे,
वरना पंखे चलते ही रहें.
लेकिन बिल जब ज्यादा या,
पापाने सबको बुलवाया,
रामू ने तब गलती मानी,
सुनागरिक बनने की ठानी.
अब तो घर का कूड़ा-करकट,
नहीं फेंकता वह रस्ते पर,
गढे में भरता जाता था,
खाद बनाता वह खुद घर पर.
कभी देखता गैस खुली है,
झट से उसको बंद कर देता,
ममी व्यर्थ न गैस जलाओ,
अच्छा-खासा भाषण देता.
नया सत्र प्रारम्भ होते ही,
पृष्ठों पर नंबर लिख देता,
कभी न कोई पेज फाड़ता,
काम नियम से था कर लेता.
इसी तरह सुनागरिक बनकर,
उसने देश का मान बढ़ाया,
बड़ी-बड़ी बातें न बनाकर,
मितव्ययिता का पाठ पढ़ाया.
मितव्ययिता अच्छी आदत है. घर में मिले संस्कारों से रामू मितव्ययिता के संस्कार सीख गया. इस बाल कथा गीत के द्वारा सबको मितव्ययिता के संस्कारों से सराबोर होने की सीख मिल सकती है. जीवन के हर क्षेत्र में मितव्ययिता अत्यावश्यक व उपयोगी है.