थोड़ा सा आसमान !
सुबह ही बाबू जी ने दोनो बेटों और बहुओं को अपने कमरे में बुलाया था। कमरा तो नाम का था बस एक पलंग मुश्किल से लगा था, और पत्नी के देहांत को अभी एक माह भी नहीं गुज़रा था कि बेटों और बहुओं में उस कमरे को लेकर झगड़ा शुरु हो गया था। सबके हिस्से में एक -एक कमरा आया था, एक छोटा सा बरामदा था और वहाँ से थोड़ा सा खुला आसमान दिखता था। बाबूजी ने सबकी बातें सुन ली थी कि अब वो अकेले हैं कमरे का क्या करेंगे?उस कमरे में बच्चे रात को सो जाया करेंगे, उनकी पढाई बड़ी कलास की है रात को भी पढ़ना होता है। बाबू जी बरामदे में सो जाया करेंगे वहाँ एक खाट भी बिछी है और थोड़ा सा आसमान भी दिखता है,उन्हें अच्छा लगेगा। बाबू जी ने बच्चौं को बुलाकर बस इतना ही कहा तुम्हें जो अच्छा लगता है कर लो, मैं कुछ दिन के लिए तीर्थयात्रा पे जाना चाहता हूँ !बाबूजी को इतना मायूस और असमंजस में सबने कभी नहीं देखा था।