ईमानदारी का पुरस्कार
रामू नाम का लकड़हारा,
नदी किनारे पर रहता था,
रोज सवेरे जल्दी उठकर,
जंगल को जाया करता था.
लकड़ियां लाकर रोज शहर में,
एक धनी को बेचा करता,
उनसे जितने पैसे मिलते,
रूखा-सूखा खाया करता.
एक दिवस लकड़ी लेने को,
रामू जंगल को था जा रहा,
नदी-किनारे एक सांड भी,
पानी पीने को था आ रहा.
दोनों की टक्कर होने से,
कुल्हाड़ी गिर पड़ी नदी में,
रामू रोने लगा वहीं पर,
”हाय, कुल्हाड़ी गिरी नदी में.”
रामू का रोना सुनकर तब,
वरुण देवता बाहर निकले,
सोने की कुल्हाड़ी सुंदर,
रामू को देने को आए.
बोले, ”ये लो अपनी कुल्हाड़ी,
अब रोने का नाम न लेना,
बोला रामू, ”यह नहीं मेरी,
मुझको तो अपनी ही लेना.”
रामू की यह बात सुनी तो,
वरुण देवता प्रसन्न हो गए,
चांदी की कुल्हाड़ी लेकर,
जल्दी से फिर प्रकट हो गए.
बोले, ”ये लो अपनी कुल्हाड़ी,
अब तो रोना बंद कर देना,”
रामू बोला, ”यह नहीं मेरी,
मुझको तो अपनी ही लेना.”
लोहे की कुल्हाड़ी लेकर,
वरुण देवता बाहर आए,
रामू उछल पड़ा और बोला,
”अब मेरी कुल्हाड़ी लाए.”
वरुण देव ने खुशी-खुशी तब,
लोहे की कुल्हाड़ी दे दी,
उसकी ईमानदारी देखकर,
सोने-चांदी की भी दे दी.
रामू जय-जयकार कर उठा,
लकड़ी काटकर वापिस आया,
सोने-चांदी की कुल्हाड़ी,
बेच रुपय्या खूब कमाया.
करने लगा दुःखियों की सेवा,
आलस कभी न करता था,
रहता था संतुष्ट सदा ही,
नींद चैन की सोता था.
बाल कविता बहुत अछि लगी लीला बहन .
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत प्रेरणादायक लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. इस बाल गीत से आपको भी बचपन की अनेक कहानियां याद आ गई होंगी, एकाध लिख दीजिए, हम उसे कविता में लिख देंगे. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है.
यथार्थता और ईमानदारी दोनों सगी बहनें हैं।
ईमानदारी किसी कायदे-कानून की मोहताज नहीं होती,
ईमानदार व्यक्ति सदैव प्रसन्न और संतुष्ट रहता है.