उलाहना
वो थे तो क्या बदला था,ये हैं तो क्या बदला है,
तब भी नारी शोषित थी, अब भी उनका दिल दहला है।
लोकतंत्र की राजनीति पर, सबने सेकी रोटी है,
वतन के हर गलियारों पर,बस गद्दारों का पहरा है।
हर शासन में बातें होती, समझौते, याराने की,
फिर भी है आतन्क यहाँ और घुसपैठी भी ठहरा है।
नारी पर अपराध हो रहे, कत्लेआम गरीबों का,
जीवन-यापन की चीजों पर,महगाई का परचम लहरा है।
सट्टेबाजी खेलों में फिर भी सुविधाएं समुचित हैं,
यहाँ अनाजों की मंडी में पानी-पानी गहरा है।