शुकराने
बदलते समय के साथ-साथ रिश्तों का बदलते जाना भी निहायत स्वाभाविक है और इन पर सोच का चलना भी स्वाभाविक है. नीरा भी कभी-कभी सोच का पिटारा खोलकर बैठ जाती थी, लेकिन उसमें शिकायत नहीं, शुकराने होते थे.
नीरा खुद भी सुबह-सुबह अध्यापिका की नौकरी के लिए स्कूल चली जाती थी, उसके पीछे दोनों बच्चे और पति भी ऑफिस के लिए निकल जाते. उस समय मोबाइल का चलन कम ही था, लैंडलाइन ही सर्वेसर्वा हुआ करती थी. नीरा 1 बजे घर आती थी, तुरंत पतिदेव का फोन आ जाता था. थोड़ी देर बाद ही बिटिया का फोन आ जाता- ”ममी, आप ठीक से घर पहुंच गईं? स्कूटर / कार भी ठीक है?” नीरा के लिए इतना ही काफी था, कोई खोज-खबर लेने वाला तो है! उसको यह भी पता था, कि बेटे को ऑफिस में अधिक व्यस्तता के कारण समय कम ही मिल पाता था, फिर भी 1-2 बार सम्पर्क हो ही जाता था. वह 35 किलोमीटर कार चलाकर ट्रैफिक जैम के कारण रात को आता भी बहुत देर से था, सो किसी से बात भी बहुत कम हो पाती थी.
समय के साथ दोनों बच्चों का विवाह हो गया, दोनों विदेश चले गए. वे भारत से 5 घंटे आगे थे. सुबह मेल बॉक्स खोलते ही बिटिया की मेल प्रतीक्षा करती मिलती थी. माता-पिता के समय की सुविधानुसार निश्चित समय पर बेटे का फोन आता था. रोज जी भरके बातें होती थीं, बहू ने क्या सब्जी बनाई, नीरा ने क्या बनाया? रेसिपी का लेन-देन भी होता था. माता-पिता को मोबाइल या लैपटॉप में कोई समस्या हो बेटा तुरंत लॉग इन करके सब कुछ ठीक-ठाक कर देता. बच्चे बार-बार माता-पिता को बुलाते भी थे, दुख-सुख में भी साथ खड़े मिलते थे.
नीरा भगवान के पल-पल शुकराने करती, कि देश भले ही बदल गया, पर रिश्ते नहीं बदले.
रिश्ते गर बंधे हो, “दिल” की डोरी से,
दूर नहीं होते, किसी भी मज़बूरी से.