छुपा के अपने आँचल माँ
कल माँ के आँचल दूध पिया,
गोदी में की अठखेलियाँ।
आज कदम धरे धरती माँ पर,
मेरी गूँज रही किलकारियाँ।।
घुटुरुनि दौड़ रहा हूँ अब तो ,
धरती माँ के ऊपर।
जननी पकड़ हटाती हर पल,
रज जो लगे हैं मुँह पर।।
माँ के नजरों से बचकर के,
मिट्टी खूब ही खाता।
जिसे देख माँ गुस्सा होती,
तनिक ना उनकों भाता।।
कभी – कभी माँ का गुस्सा,
तो बेहद ही बढ़ जाता।
उस गुस्से में गाल पीठ मेरा,
लाल रंग हो जाता।।
झर-झर अश्रु बहे नयनों से,
लाल को जब-जब मारा।
लगा के सीने से माँ ने तब,
अमृत क्षीर उतारा।।
बालक की हर पीड़ा को,
माँ हर पल ही महसूस करे।
छुपा के अपने आँचल में माँ,
सारी विपदा उससे दूर करे।।
।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045