हैप्पी मदर्स डे
इंदु के घर में बेटा-बहू व पोता थे. बेटा-बहू नौकरी पर चले जाते थे. मुन्नू की संभाल और घर के छिटपुट काम करने के लिए बहू ने कामवाली रख दी थी, ताकि ममी को कहीं भी आना-जाना पड़े, तो वे निश्चिंत रहें.
इंदु ने पिछले दिन ही अपनी कामवाली को कह दिया था, कि कल मुझे जल्दी निकलना है, इसलिए मुन्नू की संभाल करने के लिए जल्दी आ जाना और वह जल्दी आ भी गई. निकलते-निकलते इंदु ने कह दिया, ”आज मेरा लंच मत बनाना, मुन्नू को टाइम से ले आना, घर की संभाल अच्छी तरह करना आदि-आदि”.
कामवाली ने अंदाजा लगा लिया, कि बीबी जी तो अब बहुत देर से आएंगी. उसने अपनी बेटी कम्मो को फोन लगाया- ”कम्मो, सुबह तू क्या कह रही थी?”
”हैप्पी मदर्स—” कम्मो ने कहा.
”हा-हां, वही. आज मैं अकेली हूं, तू बच्चों को लेकर चली आ, मैं खाना बनाकर रख रही हूं.”
कम्मो तीनों बच्चों को लेकर चली आई.
थोड़ी देर में इंदु आ गई. क्या देखती है! छोटा बच्चा मुन्नू के बचपन के पालने में झूल रहा है, कम्मो बहू के पलंग पर लंबलेट थी, बीच वाला बच्चा मुन्नू के बर्तनों में खाना खा रहा है. बड़ा बच्चा फ्रूट बॉस्केट को खत्म करने की मुहिम में जुटा हुआ था.
अंदाजा सही न निकलने के कारण कामवाली मां ने इंदु की दो-चार बातें सुन लीं तो क्या हुआ, उसे तो सुनने की आदत थी ही, पर उसका और कम्मो का मदर्स डे तो मन गया था.
सच्चाई
प्रिय सखी सुमन जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सच्चाई से सराबोर लगी. आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
अक्सर कामवालियां ऐसे ही करती हैं. वे अपने स्तर को मालिक के स्तर के बराबर बनाने के सपने संजोती हैंऔर अवसर मिलते ही उन सपनों को अमली जामा पहना देती हैं. इंदु की कामवाली ने भी ऐसा ही किया.