कविता : गुरैया दिवस [पर्यावरण ]
नैन जिनको देख सदा खुश होते है ,
हर उम्र के लोगो में खुशी क्षण भर दे |
फुरर उड़ खाने को इधर-उधर होते है ,
यही गुरैया की चहचाहट से घर भर दे |
दाना चुगे उड़ जाये या नीड में होते है ,
रूप बसंत कथा में इनके प्रसंग भर दे |
बच्चे प्यार में पकड़ने खूब ही होते है,
उनके तेज स्वर आलम में उमंग भर दे |
यूरिया खाद और प्रदूषण तो खूब होते है ,
गुरैया की कमी सी मन में दर्द भर दे |
अगर जो वातावरण स्वस्थ होते है ,
पक्षी भी सूनापन में खुशी भर दे |
— रेखा मोहन