गीतिका
2122 1212 22 (112)
प्यार के दीप जो जलाते हैं
लव शिकायत वही भगाते हैं.
लाख हो ऐब अपने बच्चों मे।
माँ कि आंखों सदा समाते है।
किस तरह आसमाँ घुमे आये
जग नया कारवां दिखाते है |
हो गये बच्चे अब बड़े मेरे
फिर बुला नेह से सुनाते है|
आज भी ठहर बस उसी मकान ,
अब रुको तुम अभी बुलाते हैं।
ज़िन्दगी में बहार मानी है,
क्यों तुम असल को छिपाते हैं|
रेखा मोहन १५/५/१८