लघुकथा

बदला

“यह क्क्य्या नाटक लगा रखी हो… सुबह से बक-बक सुन पक्क गया मैं… जिन्हें अपने पति की सलामती चाहिये वे पेड़ के नजदीक जाती हैं… ई अकेली सुकुमारी हैं…” ड्राइंगरूम में रखे गमले को किक मारते हुए शुभम पत्नी मीना पर दांत पिसता हुआ झपट्टा और उसके बालों को पकड़ फर्श पर पटकने की कोशिश की… मीना सुबह से बरगद की टहनी ला देने के लिए अनुरोध पर अनुरोध कर रही थी… पिछले साल जो टहनी लगाई थी वह पेड़ होकर, उसके बाहर जाने की वजह से सूख गई थी… वट-सावित्री बरगद की पूजा कर मनाया जाता है… फर्श पर गिरती मीना के हांथ में बेना आ गया… बेना से ही अपने पति की धुनाई कर दी… घर में काम करती सहायिका मुस्कुरा बुदबुदाई “बहुते ठीक की मलकिनी जी… कुछ दिनों पहले मुझ पर हाथ डालने का भी बदला सध गया… शुभम सहायिका द्वारा यह शुभ समाचार घर-घर फैलने के डर से ज्यादा आतंकित नजर आ रहा था…

 

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “बदला

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    ha ha , bahut achhi rahi .

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      आभारी हूँ भाई

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