कृतघ्न कौन?
एक आदमी पेड़ के नीचे,
बैठा-बैठा ऊंघ रहा था,
एक शेर भी बहुत दूर से,
मानव की गंध सूंघ रहा था.
आंख अचानक खुली मनुष्य की,
देखा उसने शेर आ रहा,
डरकर भागा मानव आगे,
पीछे-पीछे शेर आ रहा.
जब न रहा कोई चारा तो,
एक पेड़ पर जा नर बैठा,
उसने देखा बैठ पेड़ पर,
एक बड़ा बंदर था बैठा.
”शरणागत हूं बंदर भाई,
शेर के कारण शामत आई,
शेर चला जाएगा जब तो,
मैं भी चल दूंगा तब भाई”.
बंदर बोला, ”डरो नहीं तुम,
बाल न बांका शेर करेगा,
अपनी जान की बाजी देकर,
बंदर आपकी रक्षा करेगा”.
बैठा रहा पेड़ पर वह नर,
शेर खड़ा था पेड़ के नीचे,
रह-रह कर गुर्राता था वह,
काश! गिरे वह नर डर नीचे.
बैठे-बैठे ऊंघ रहा नर,
बंदर बोला, ”तुम सो जाओ”,
खर्राटों का शब्द सुना तो,
कहा शेर ने, ”इसे गिराओ”.
बंदर बोला, ”ठीक नहीं यह,
यह तो है शरणागत मेरे”,
कहा शेर ने, ”बनो न बुद्धू,
काम न आएगा यह तेरे,
यह तो ऐसा प्राणी है जो,
कृतज्ञता को नहीं जानता,
मौका पाकर कृतघ्नता को,
किंचित दूषित नहीं मानता.
तुम्हें अगर विश्वास न हो तो,
तुम सोने का करो बहाना”,
बंदर बोला, ”उठो बंधुवर,
अब तुम शेर से मुझे बचाना”.
बंदर झूठमूठ सोया जब,
कहा शेर ने, ”मैं हूं भूखा,
तुम आओ या इसे गिराओ,
जल्दी मेरी भूख मिटाओ”.
बंदर को जब लगा गिराने,
बंदर बोला, ”बड़े दुष्ट हो,
जो देता है शरण उसी के,
प्राणों के तुम भक्षक हो!
फिर भी तुमको शेर के आगे,
मैं तो कभी नहीं डालूंगा,
तुमने कृतघ्नता खूब निभाई,
मैं यह काला कलंक न लूंगा”.
शेर चला तब अपने रस्ते,
बंदर को कर खूब प्रणाम,
गर्दन उठा सका नहीं नर,
मन-ही-मन कर रहा सलाम.
कभी-कभी जानवर भी मनुष्य को कृतज्ञता का पाठ पढ़ा देते हैं. कृतज्ञता बहुत बड़ा गुण है, जो रिश्ते निभाने और रक्षा करने में सहायक होता है.