कविता

माँ

माँ
“””””
माँ
सुबह बनके
जगाती है
सबको
चिड़िया सी
चहकती
फुलबारी सी
महकती
फिर दोपहर
बन जाती
सबको भोजन
खिलाती
फिर स्वयं खाती
ढ़लती दोपहरी
की तरह
बिन ज़िरह
बन जाती सांझ
करती स्वागत
अपने काम से
आने वालों का
केवल मुस्कराकर
सबको खिलाकर
फिर कुछ पाकर
बन जाती निशा
बुझ जाती
दिये की भाँति
फिर बनने के लिए
अगली सुबह …
        —————
             – विश्वम्भर पाण्डेय ‘व्यग्र’
             कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,
            स.मा. (राज.) 322201
              मोबा: 9549165579

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201