गज़ल
न उरूज़ साथ जाए न जवाल साथ जाए
आखिरी सफर में बस आमाल साथ जाए
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जीते जी तो अब न तू निकल सकेगा दिल से
टूटे ये आईना तो ही ये बाल साथ जाए
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मुझे एक पल न तनहा कभी छोड़ें तेरी यादें
मैं जहां भी जाऊँ बनके तू ख्याल साथ जाए
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क्या बिगाड़ लेंगी फिर मुश्किलें कुछ अपना
माँ की दुआओं की जब इक ढाल साथ जाए
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दिल-ओ-दिमाग-ओ-रूह में जो बसा हुआ है तू ही
तो क्या हिज्र रहे पीछे क्या विसाल साथ जाए
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।