दर्द
दर्द को रूह में उतारकर हमने जो लिखी रुसवाई ,
तड़फकर दुनिया भी कह उठी ये कहाँ से शबे गम आई ।
फिराक ऐ यार के अदब में जुर्रतें तो मिसाल थी ,
अदब ऐ इश्क़ ने क्या खता थी कहलाईं ।
शराफत और शरीयत को जामा पहनाना तो सिर्फ शौक था ,
अदाएं प्यार की हमारी क्यों जुर्म समझ आईं ।
शहनाई प्यार की हमारी खूबसूरत बदगुमानी थी ,
दुनिया के रहमोकरम से क्यों जान पर बन आई ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़