सामाजिक

दहेज लोभी

जूही ,चम्पा, चमेली सी खिली हाथों में मेंहदी लगाये आँखो में अनगिनत सपने सजाये, माँ की लाडली पिता की दुलारी लाल जोडे़ में सजी सिमटी सकुचाई सी मण्डप पर बैठी थी अभी सात फेरे भी नहीं हुये थे कि दहेज के लालच में एक क्षण में सब कुछ बदल दिया। जब दुल्हे के पिता ने रकम पूरी न मिलने पर बारात वापिसी का फैसला सुना दिया। लड़की के बेबस पिता ने लाख मिन्नते की रोया, गिड़गिडाया इज्जत की दी,दुहाई पर सब बेकार हो गया एक ही पल में सारे सपने बिखर गये। जहाँ शहनाईयाँ गूँज रही थी वहां गम ही गम था काश! दहेज का लालच न होता तो सपने सँवर गये होते बिखरने से बच गये होते, यदि दहेज लोभी न होते।

— कालिका प्रसाद सेमवाल

कालिका प्रसाद सेमवाल

प्रवक्ता जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, रतूडा़, रुद्रप्रयाग ( उत्तराखण्ड) पिन 246171