“रिश्ते ना बदनाम करें”
पहले काम तमाम करें।
फिर थोड़ा आराम करें।।
आदम-हव्वा की बस्ती में,
जीवन के हैं ढंग निराले।
माना सबकुछ है दुनिया में,
पर न मिलेगा बैठे-ठाले।
नश्वर रूप सलोना पाकर,
काहे का अभिमान करें।
पहले काम तमाम करें।
फिर थोड़ा आराम करें।।
सागर है जलधाम कहाता,
लेकिन स्वाद बहुत है खारा।
प्यास पथिक की सदा बुझाती,
कलकल-छलछल करती धारा।
खुद खायें, औरौं को खिलाये,
जमा न ज्यादा दाम करें।
पहले काम तमाम करें।
फिर थोड़ा आराम करें।।
सोना उसको ही मिलता है,
जिसने सोना त्याग दिया।
उसका ही जग हो जाता है,
जिसने भी अनुराग किया।
सम्बन्धों को सदा निभायें,
रिश्ते ना बदनाम करें।
पहले काम तमाम करें।
फिर थोड़ा आराम करें।।
—
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)