कविता

हिन्दी बेचारी सिसक रही, कैसे इनको गढा गया।।

नव युग के निर्माता से, नौ लिखा गया न पढ़ा गया।
हिन्दी बेचारी सिसक रही, कैसे इनको गढ़ा गया।।
हिन्दी बेचारी सिसक रही……………

नौ लिखके जो बतला दिया, बोले ये त्रिसूल है।
अभी नवासी,उन्नायसी में, फंसते सब स्कूल हैं।
बारहखडी को भूल गये हैं, ए बी सी के आगे।
पहाड़ बनी ककरहा है, पहाड़ा भी न पढ़ा गया।।
हिन्दी बेचारी सिसक रही…………….

पैमाना सारा भूले हैं, अद्धा पौना भी जाने न
कलम उठा ली हाथों में, तख्ती भी पहचानें ने
तख्ती से तख्ता पलटा है, कर्जा चुका नही पाये
लथ पथ काया से ये, हिन्दुस्तान गढ़ा गया।
हिन्दी बेचारी सिसक रही……………

चमडी गोरी सब उधड गई, भाषा उनकी खटकती है
हाय बाय सब करते हैं, हिन्दी सर को पटकती है।
अभी यहां कुछ गया नही, ठोकर से निकलेगी अः
मां की भाषा का ये चिप्पक, ऐसे नही जड़ा गया।
हिन्दी बेचारी सिसक रही……………

सात को छ कहने वाले, तीन को भी न जान सके
आठ को यू समझ रहे, पांच को वाई मान रहे।
हर भाषा का इल्म सभी को होना बहुत जरूरी है
राजभाषा पर जबरन, कुछ तो यहां जडा गया।
हिन्दी बेचारी सिसक रही……………
राज कुमार तिवारी (राज)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782