ममता की छांव
उसका किसान बेटा अचानक हुई बारिश में भीगने से बीमार पड़ गया. स्थानीय अस्पताल में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई, तो डॉक्टरों ने उन्हें पुणे रिफर कर दिया. परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी, कि वह पुणे जाकर किसी बड़े अस्पताल में इलाज करा सकें. परिवार का परेशान होना लाजिमी था. तभी गांववालों और रिश्तेदारों की ममता के दर्शन हुए. बेटे की मदद के लिए गांववालों और रिश्तेदारों ने शुरू में करीब 6 लाख रुपये जुटा लिए और पुणे लेकर इलाज के लिए पहुंचे.
पहले उसे स्वाइन फ्लू और न्यूमोनिया से पीड़ित बताया गया, फिर उसकी लगातार खराब होती स्थिति को देखते हुए डॉक्टरों ने उसे तुरंत वेंटिलेटर पर रखा. जांच के दौरान पता चला कि किडनी भी खराब है और अब उनका बचना भी काफी मुश्किल है. दुख की इस घड़ी में उस के परिवार के साथ गांववाले अस्पताल में मौजूद रहे. वे लगातार परिवार को ढांढस बढ़ाते रहे और विश्वास दिलाते रहे कि उस को कुछ नहीं होगा. इधर, हॉस्पिटल और डॉक्टरों ने भी पूरी मदद की. उसे करीब 2 महीने तक आईसीसीयू में रखा गया. इस दौरान करीब 20 लाख रुपये का खर्च आया, लेकिन गांववालों और रिश्तेदारों के कारण यह बिल आसानी से जमा हो गया.
गांववालों और रिश्तेदारों की उसी ममता की छांव में आज उसके बेटे का मानो पुनर्जन्म हुआ है.
दुनिया में तेरे प्यार का कोई तोल नहीं,
तेरे अहसानों का मां दुनिया में कोई मोल नही,
तेरे नाम की तुलना में दुनिया में कोई बोल नहीं,
स्वार्थ की दुनिया में तेरी कोई पोल नहीं,
मां ममता का वह रूप,
जिसमें बाहरी दिखावे की कोई खोल नहीं.