लघुकथा – लेखन
“ये क्या लिखा है तुमने? न सिर है, न पैर। वाह-वाही लूटने के लिए अश्लील शब्दों की भरमार… पता नहीं ये नवागंतुक अपने आपको क्या समझते हैं । छोड़ जाओ इसे यहीं। अभी दूसरों को पढ़ो, फिर लिखने की सोचना”।
सुधा को काटो तो खून नहीं । राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए वह अपनी कविता राघव सर को दिखाने आई थी। “अभी पूरी तरह अण्डे से बाहर आई नहीं और चलीं हैं राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में भाग लेने?” का जुमला सुन कर कमियां पूछने की हिम्मत ही न हुई ।
राघव सर उसके लिए पूजनीय थे। उनकी छत्रछाया में वह अपनी प्रतिभा को निखारने में लगी थी।
सुधा का तो पता नहीं….. पर हाँ, उस जैसी प्रतिभाशाली शिष्या को पाकर पूजनीय राघव “राष्ट्रीय प्रतियोगिता” में प्रथम स्थान जीत चुका था ।
अंजु गुप्ता