गीतिका
जब से ये श्रृंगार हुए हैं
सपने भी साकार हुए हैं
खुशियाँ हमको मिलीं डगर तो
सब दिन ही त्योहार हुए हैं
तुमने जब से चाह लिया है
अपने ही गलहार हुए हैं
जब से जीवन में तुम आए
कितने ही उपकार हुए हैं
जितना चाहा है तुमने तो
हम पागल हर बार हुए हैं
हर दर पर दीये रखने से
उजले सब घरबार हुए हैं
भर कर दें आशीष ‘रश्मि’ जो
सुख तो अपरंपार हुए हैं
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’