एक साथ प्यास बुझाते शेर (दो कविताएं)
1.सिखाते हैं
गर्मी से बेहाल जंगल के जानवर,
फिर भी रहते हैं साथ बड़े प्यार से,
एक साथ प्यास बुझाते दिखे 11 शेर,
सिखाते हैं हमें क्या मिलेगा तकरार से?
गर्मी से बेहाल जंगल के जानवर,
रहते हैं अक्सर मौन के तरन्नुम में चुपचाप से,
पेट भरने पर या डरने-डराने को दहाड़ते हैं,
सिखाते हैं हमें मत बोलो हर समय तुम भी बेकार से.
गर्मी से बेहाल जंगल के जानवर,
कहते हैं इंसान रह सकते हैं इतने बयाबान में कैसे?
हम तो हो गए बेहाल इंसानों द्वारा,
प्राकृतिक संसाधनों के साथ की गई छेड़छाड़ से.
न सदा साथ धन रहेगा न तुम्हारा माल-खजाना,
क्यों नहीं पेट भरता तुम्हारा बेतहाशा जमा किए धन-माल से,
सिखाते हैं सीख वे हमें यह कहकर,
हम तो चल देते हैं सब कुछ छोड़-छाड़कर पेट भरते ही बड़े प्यार से?
सोचते नहीं बाद में हमें खाने को क्या मिलेगा?
देने वाला सबको देता है नकद, न देता उधार से,
पल का ठिकाना नहीं करें क्यों सालों-साल की चिंता,
हम तो रहते हैं मस्त उस मालिक की इनायत और इसरार से.
तुम्हें शिकायत करने को कोई बहाना चाहिए,
सुना है रहते हो आजकल बेज़ार आधार से,
छोड़ो ये शिकायत-तकरार के बहाने
असल में हम सब ज़िंदा ही हैं उस मालिक के आधार से.
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2.इंसानों को सीख
भीषण गर्मी के बीच
गुजरात के गिर नेशनल पार्क में
एक साथ प्यास बुझाते नौ शेर
हमें सिखलाते हैं
मिलकर जिओ और जीने दो
मिलकर पानी पिओ और पीने दो
समूह में जो भी नया शेर आता
सरककर उसके लिए जगह बनाई जा रही थी
मानो हमें एक अनुपम सीख दी जा रही थी
किसी से उसकी जाति या नस्ल नहीं पूछी गई
आप भी आइए आपका भी स्वागत है भई
छोटे-बड़े सबका बराबर सम्मान किया गया
सबको एक समान स्थान दिया गया
सभी पंक्तिबद्ध अनुशासन में खड़े थे
नहीं आपस में किसी बात पर लड़े थे
सभी झुककर पानी पी रहे थे
वे विनम्रता दिखाते हुए जी रहे थे
एक घाट पर नौ शेर प्रेम से पानी पी रहे थे
सचमुच वे जंगल के राजा की तरह जी रहे थे
इंसानों को भी ऐसा ही करने की सीख दे रहे थे.
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शेरों की इंसानों को सीख
पानी के बिना जीवन की करोगे कैसे नैया पार,
करनी है नैया पार तो बनो हमारे जैसे समझदार,
मिलकर प्रेम से रहना सीखो,
छोड़ो बेकार की रार-तकरार.