गीतिका/ग़ज़ल

काश ये आता समझ हर आदमी को…

काश ये आता समझ हर आदमी को
रंजिशें देती नहीं खुशियाँ किसी को

झूठ की हमदर्दियाँ डँसने लगी हैं
नाग बनकर ज़िन्दगी की आजिजी को

देखता है हर कोई मुस्कान लब की
देखता है कौन आँखों की नमी को

दौर है खुदगर्जियों का कौन इसमें
क्यूँ भला देगा खुशी यूँ ही किसी को

घोर अँधियारा बता ख़ुद को उजाला
छल रहा है देखिये हर ज़िन्दगी को

लोग वो कम ही बचे हैं अब जहाँ में
मानते हैं दोस्ती जो दोस्ती को

ज़िन्दगी में जब किया जिस पर भरोसा
खूब उसने ही भुनाया बेबसी को

सतीश बंसल
२०.०५.२०१८

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.