काश ये आता समझ हर आदमी को…
काश ये आता समझ हर आदमी को
रंजिशें देती नहीं खुशियाँ किसी को
झूठ की हमदर्दियाँ डँसने लगी हैं
नाग बनकर ज़िन्दगी की आजिजी को
देखता है हर कोई मुस्कान लब की
देखता है कौन आँखों की नमी को
दौर है खुदगर्जियों का कौन इसमें
क्यूँ भला देगा खुशी यूँ ही किसी को
घोर अँधियारा बता ख़ुद को उजाला
छल रहा है देखिये हर ज़िन्दगी को
लोग वो कम ही बचे हैं अब जहाँ में
मानते हैं दोस्ती जो दोस्ती को
ज़िन्दगी में जब किया जिस पर भरोसा
खूब उसने ही भुनाया बेबसी को
सतीश बंसल
२०.०५.२०१८