पर्वत के पीछे हुआ, ज्यों ज्यों अम्बर लाल
- पर्वत के पीछे हुआ, ज्यों ज्यों अम्बर लाल।
पर्वत चाँदी हो गये, बादल हुए गुलाल।।
भोर सुन्दरी आ गयी, धर किरणों का वेष।
देखो लगी समेटने, निशा तमस के केश।।
छूट निशा की कैद से, पा प्रभात का संग।
श्यामल बादल पा गये, सौम्य केसरी रंग।।
वट वृक्षों के बीच से, छनती कोमल धूप।
जैसे नवदुल्हन बनी, नवयुवती का रूप।।
अँधियारे को चीर कर, निकला स्वर्ण प्रभात।
नवदुल्हन के नयन में, ठहरी अब तक रात।।
कैसे छुपता जो हुआ, पिया मिलन की रात।
नयन उनींदे कह रहे, बिन बोले हर बात।।
दिया किसी को शाम ने, मधुर मिलन पैगाम।
और किसी को दे गयी, आँसू ढलती शाम।।
जब नारी के रूप पर, चढ़ता है रति रंग।
जप-तप विश्वामित्र का, कर देती है भंग।।
बंसल जीवन बाँटता, यूँ ही जीवन रंग।
कभी भोर के संग तो, कभी शाम के संग।।
सतीश बंसल
२१.०५.२०१७