हर पल को जी लूं !
हर पल को जी लूं !
कहता है मन कभी कभी
तोड़ के बंधन ये अजनबी
आज हर पल को जी लूं
कल्पनाओं का तिलिस्म
जाने क्या कशिश है इसमें
खींचता है जो अपनी ओर
आज ख्वाहिशें न बहेंगी
नैनों की ओट से कहीं
क्योंकि सोचा है आज
खुद को समझने का
बरसों से चाहा था जीना
वो हर पल जी लूं आज
खुले गगन में ,मैं और
मेरी परवाज !