गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल 1

सुन तेरे पास आने को जी चाहता है
फिर गले से लगाने को जी चाहता है।
मोहब्बत में हद से गुज़र जाएं आजा
कि अब पार जाने को जी चाहता है।
मैं आ कतरा  कतरा लिखूं नाम तेरे
यूं सबकुछ लुटाने को जी चाहता है।
मुझे अपनी आगोश में गुम कहीं कर
हां खुद को मिटाने को जी चाहता है।
बहुत ग़म दिए हैं मोहब्बत ने हमको
अब तेरा प्यार पाने को जी चाहता है।
इन निगाहों में तेरी समन्दर बसे हैं
बस मेरा डूब जाने को जी चाहता है।
न कुछ तुम कहो और न हम कुछ कहें
बस निगाहें मिलाने को जी चाहता है
ऐ ‘जानिब’ तेरी रूह से यूं लिपटकर
रोने और रुलाने को जी चाहता है
— पावनी जानिब, सीतापुर

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर