गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल 2

दिल से दिल की लगी छुपाने के लिए
ज़ख़्म ए दिल छुप छुप नहीँ धोता कोई ।
ख्वाब ने नींद को खुलने न दिया शायद
वर्ना इस तरह इस कदर नहीँ सोता कोई।
जब तलक दिल में प्यार बेशुमार न हो
किसी की ख़ातिर यूं ही नहीँ रोता कोई।
पीना पड़ता है जाम या मय आंखो के
हां बिना नशे के नशे में नहीँ होता कोई।
पौधा ए चाहत उग जाता है अपने से ही
दर्द ए ग़म का बीज यू नहीँ बोता कोई।
अगर मालूम हो हस्रे मोहब्बत ‘जानिब’
गली में यार की जाकर नहीँ खोता कोई।
— पावनी जानिब, सीतापुर

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर