कविता

अरुणा शानबाग (1 June 1948 – 18 May 2015)

कहते हैं खुश रहती थी वह,
सबकी सेवा कराती थी।
सच्चाई के राह की प्रेमी,
सत्यवती वह तनीयसी थी।।

कार्यक्षेत्र में अपने वह,
एक नयी पहचान थी।
दृढ निश्चयी, कर्मवती की,
मद्धम सी मुस्कान थी।।

प्रेममयी की प्रेम पिपासा,
नित सेवा रुग्णों की करना।
सच्चाई की राह पर चलाना,
दुष्टजनों से कभी ना डरना।।

हाय! लुटी वह सत्य राह पर,
स्वान वृत्ति के पापी नर से।
दुष्कृत्यों को छुपा सकी ना,
धवल ह्रदय के भावों से।।

स्वान क्षुधा का भोगी नर,
तामस भोजन से था पोषित।
छूट गया पर्याप्त दंड बिन,
जिससे अरुणिमा हुई शोषित।।

पाप बना जब काल जाल,
फुलवारी में दुर्दिन आया।
मसली कुचली कलिका को,
अपनाने स्व भ्रमर ना आया।।

भ्रमर दूर की कौड़ी था,
माली भी उसे भूल गया।
जो बगिया की शोभा थी,
उसका समाज से मान गया।।

जीने की इच्छा मन में थी,
तन को लकवे ने मार दिया।
संघर्ष मृत्यु से करती रही,
जो चार दशक के पार गया।।

इन समय की घड़ियाँ बीती कैसे,
इसका अहसास करे भी तो क्या।
अरुणा ना रही ना हम अरुणा से,
जिस पर बीती वो कह ना सकी।।

जाने कितना दुःख भरा ह्रदय में,
कितनी इच्छायें पूर्ण हुयी ना।
कुछ बात लिये मन में ही चली,
हम सब को दिखाकर आईना।।

शायद वो सोच रही होगी,
अम्बर में तारा बनकर।
बड़ी देर लगादी आने में,
दो मुहें समाज की दुनिया से।।

मोमबत्ती जलाकर आँसू बहते,
ये समुचित न्याय नहीं दिलाते।
तब तक याद इन्हें रहती ना,
जब तक अपराधी तूफान ना लाते।।

।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045

प्रदीप कुमार तिवारी

नाम - प्रदीप कुमार तिवारी। पिता का नाम - श्री दिनेश कुमार तिवारी। माता का नाम - श्रीमती आशा देवी। जन्म स्थान - दलापुर, इलाहाबाद, उत्तर-प्रदेश। शिक्षा - संस्कृत से एम ए। विवाह- 10 जून 2015 में "दीपशिखा से मूल निवासी - करौंदी कला, शुकुलपुर, कादीपुर, सुलतानपुर, उत्तर-प्रदेश। इलाहाबाद मे जन्म हुआ, प्रारम्भिक जीवन नानी के साथ बीता, दसवीं से अपने घर करौंदी कला आ गया, पण्डित श्रीपति मिश्रा महाविद्यालय से स्नातक और संत तुलसीदास महाविद्यालय बरवारीपुर से स्नत्कोतर की शिक्षा प्राप्त की, बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष लगव रहा है। समाज के सभी पहलू पर लिखने की बराबर कोशिस की है। पर देश प्रेम मेरा प्रिय विषय है मैं बेधड़क अपने विचार व्यक्त करता हूं- *शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा।।* और भ्रष्टाचार पर भी अपने विचार साझा करता हूं- *मैं शब्दों से अंगार उड़ाने निकला हूं, जन जन में एहसास जगाने निकला हूं। लूटने वालों को हम उठा-उठा कर पटकें, कर सकते सब ऐसा विश्वास जगाने निकला हूं।।* दो साझा पुस्तके जिसमे से एक "काव्य अंकुर" दूसरी "शुभमस्तु-5" प्रकाशित हुई हैं