सूरज दादा
”सूरज दादा, सूरज दादा,
कहो चमकते कैसे हो?
युगों-युगों से पलक न झपकी,
फिर भी दमकते कैसे हो?
कौन-सी गैस से मिले रोशनी,
कौन-से पंप से देते हो?
कौन तुम्हें ईंधन देता है,
कैसे तुम ले लेते हो?
तुमसे जग को ताप मिले,
तुम ही करते उजियारा हो,
अंधियारे से मिले न अब तक,
हर जन मीत तुम्हारा हो.
राज़ न हो तो हमें बताओ,
हम भी ज्ञान बढ़ा पाएं,
वरना इन सारे प्रश्नों का,
बोलो हल कैसे पाएं?”
सूरज की किरणों से सीखा,
जग को रोशन करना,
उज्ज्वलता के वर को पाकर,
उज्ज्वलता से भरना.