मोहब्बत को मेरी वो नादानी कह गया,
आँखों से बहते दर्द को पानी कह गया।
उसकी एक आह पर निकलती थी जान,
आज भरी महफ़िल में बेगानी कह गया।
जब पूछा क्या था वो, जब साथ साथ थे,
संग बिताये लम्हों को कहानी कह गया।
मैं ही पागल थी जो टूटकर चाहती थी,
मुझे वो अपनी पगली दीवानी कह गया।
पूछी खता जो मैंने मेरी उस जालिम से,
मुस्कुरा कर समझा कर रानी कह गया।
टूट कर बिखर गयी होती मैं कब की यहाँ,
पर जाते हुए अपनी जिंदगानी कह गया।
जिंदगानी कह उम्र भर का इंतजार दे गया,
तड़प को मोहब्बत की निशानी कह गया।
सुलक्षणा लिखती है अपने दर्द ऐ दिल को,
तेरी यादों में है जिंदगी बितानी कह गया।
— डॉ सुलक्षणा अहलावत